“ईदगाह” मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक लघु कहानी है जो गरीबी, प्रेम और मासूमियत के विषयों की पड़ताल करती है। यह हामिद नाम के एक युवा लड़के की दिल को छू लेने वाली कहानी है, जो भारत के एक गाँव में अपनी दादी के साथ अत्यधिक गरीबी में रहता है।
कहानी मुस्लिम त्योहार ईद की सुबह से शुरू होती है। हामिद के दोस्त नए कपड़े और खिलौने खरीदने के लिए उत्साहित हैं, लेकिन हामिद के पास कुछ भी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। वह अपनी दादी से उसे एक खिलौना खरीदने के लिए भीख माँगता है, लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ है क्योंकि उनके पास जीवित रहने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है।
हालांकि, हामिद त्योहार का आनंद लेने के लिए दृढ़ है और ईदगाह (खुली हवा वाली मस्जिद जहां ईद की नमाज अदा की जाती है) की यात्रा पर अपना एकमात्र पैसा खर्च करने का फैसला करता है। रास्ते में, वह बच्चों को खिलौनों से खेलते और मिठाई खाते हुए देखता है, लेकिन वह बेफिक्र होकर मस्जिद की ओर चल देता है।
एक बार जब वह वहाँ पहुँच जाता है, तो वह अपने चारों ओर सब कुछ देखने लगता है – लोग, सजावट और प्रार्थनाएँ। उसकी मासूमियत और जिज्ञासा उसे एक भावनात्मक यात्रा पर ले जाती है, जिससे वह जीवन और उसके अर्थ के बारे में गहराई से सोचता है। वह मस्जिद में आने वाले अमीर लोगों को भी देखता है, जो ईद के सही मायने से ज्यादा अपनी हैसियत को लेकर चिंतित रहते हैं।
हामिद के घर लौटने पर, उसकी दादी ने प्यार और स्नेह से उसका स्वागत किया, जिसने उसे एक साधारण भोजन बनाया। वह फिर उसे मिट्टी से बने हस्तनिर्मित खिलौने से आश्चर्यचकित करती है। हामिद खिलौने से बहुत खुश है और बाकी का दिन उसके साथ खेलता है।
कहानी हामिद के सो जाने के साथ समाप्त होती है, जो अपनी दादी के प्यार और दुलार और मस्जिद में अनुभव की गई खुशी से संतुष्ट है। उसे पता चलता है कि सच्ची खुशी भौतिक संपत्ति से नहीं बल्कि हमारे जीवन में हमारे प्यार और रिश्तों से आती है।
“ईदगाह” एक मार्मिक कहानी है जो पाठक के दिल को छू जाती है। यह हमारे जीवन में मासूमियत, सादगी और प्यार के महत्व पर प्रकाश डालता है, और कैसे गरीब से गरीब व्यक्ति भी जीवन की छोटी-छोटी चीजों में खुशी और संतोष पा सकता है। यह एक कालातीत क्लासिक है जो हमें जीवन के बारे में मूल्यवान सबक सिखाता है, और इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों के लिए पाठकों के साथ प्रतिध्वनित होता रहेगा।
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ईदगाह एक उत्सव स्थल होता है जहां ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा के दौरान मुसलमान नमाज पढ़ने जाते हैं। यह भारत के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद होता है।
“ईदगाह” मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक कहानी पर आधारित है। इस कहानी में एक बूढ़े मुसलमान आदमी का जीवन दिखाया गया है जो आतंकवाद की विरोधी लड़ाई में अपने पोते के साथ उलझ जाता है।
हां, ईदगाह में आमतौर पर मस्जिद की तरह सजावट और आभूषण लगाए जाते हैं। इसके अलावा, कई लोग ईदगाह में शामिल होकर खुशी का इजहार करते हैं।
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